फ्रांसीसी क्रांति (french revolution)
फ्रांसीसी क्रांति 5 मई 1789 ई० को हुई थी। जिसने शीघ्र ही भीषण रूप धारण कर लिया। इसके परिणाम स्वरुप फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र का अंत हो गया और लोकतांत्रिक शासन की स्थापना की गई। फ्रांसीसी क्रांति के शुरू होने के मुख्य कारण-
फ्रांसीसी क्रांति के कारण
राजनीतिक कारण (political reasons )
(1) भ्रष्ट शासन-
राज्य के शासक बड़े अयोग्य थे। इसी कारण देश का शासन भी अत्यधिक भ्रष्ट हो चुका था। प्रशासन के उच्च पदों का क्रय विक्रय किया जाता था पदाधिकारियों के अधिकारों एवं कर्तव्यों की कोई सीमा निर्धारित नहीं थी उच्चाधिकारी रिश्वतखोरी के शिकार थे और जनता का मनमाना शोषण किया करते थे प्रांतों की सीमाएं अनिश्चित थी। कोई प्रांत बहुत बड़ा होता था तो कोई बहुत छोटा। प्रांतों की शासकों पर कोई नियंत्रण न था और ना ही उनको प्रशासन में सहायता देने के लिए कोई संस्था ही होती थी। प्रांतों की शासन प्रणाली में भी पर्याप्त भिन्नता थी। कानून व्यवस्था भी बड़ी विषम थी। एक स्थान पर जो वस्तु कानून होती थी वही दूसरे स्थान पर गैर-कानूनी मानी जाती थी। देशभर में लगभग 300 प्रकार के कर पर प्रचलित थे।
(2) राजाओं की निरंकुशता-
राज्य -क्रांति के पूर्व फ्रांस में स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश है निरंकुश राजतंत्र- प्रणाली प्रचलित थी। राजा स्वयं को 'ईश्वर का प्रतिनिधि' और देवी अधिकारों का स्वामी समझता था। राजा की आज्ञा ही कानून थी। लुई 14वां ने घोषणा कर दी थी मैं ही राज्य हूं(I am the state)। लुई 15वां तथा लुइ 16 भी इस मत का समर्थक था। फ्रांस में राजा को असीमित अधिकार प्राप्त थे वह अपनी इच्छा अनुसार किसी भी व्यक्ति को प्रशासन में उच्च पद दे सकता था और किसी भी उच्च पदाधिकारी को किसी भी समय पर नियुक्त कर सकता था यद्यपि फ्रांस में एस्सेट्स जनरल (Estates General) तथा पार्लियामेंट जैसी संस्थाएं विद्वान थी यद्यपि विगत 175 वर्षों से फ्रांस में एस्सेट्स जनरल (Estates General) का कोई अधिवेशन नहीं बुलाया गया था राजस्व व्यक्तिगत परामर्श सभा की सलाह से प्रशासन का संचालन करता था। जनसाधारण के हित की और उसका कोई ध्यान ना था। राजकीय कर्मचारी अपने कार्यों के लिए राजा के प्रति उत्तरदाई होते थे राजा को संध्या युद्ध करने का एकाधिकार प्राप्त था उसके कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार किसी को न था। वे मुद्रित पत्रों या 'लेटर्स दि काशे' (Letters de cachet) से द्वारा किसी भी व्यक्ति को अनिश्चित समय के लिए बंदी बनाकर जेल में डाल सकते थे राजा ही स्वेच्छाचारी था और निरंकुशता ने फ्रांस के शासन में को व्यवस्था उत्पन्न कर दी थी। राजाओं की योग्यता एवं भ्रष्टाचार ने सारी स्थिति को बिगाड़ दिया था।
(3) दूषित कर प्रणाली-
फ्रांस की कर प्रणाली बड़ी दूसरी थी। समृद्धि कुलीन वर्ग करो से मुक्त था अथवा विशेष अधिकारों का प्रयोग करके कर मुक्त हो जाया करता था। उत्साह बंद कर देना अपना अपमान समझते थे और अपने विशेष अधिकारों को छोड़ने के लिए तत्पर मत है करो का संपूर्ण भार जनसाधारण वर्ग पर था, जो करो के बाहर से जर्जर हो गया था और अधिक कर देने में सर्वथा असमर्थ था।
(4) लुइ 16वां का चरित्र-
फ्रांस का सम्राट लुई सोलहवा एक अयोग्य अस्थिर और मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति था जिससे उसके प्रति जनता में बड़ा असंतोष था। वह दयालु तथा उदार था किंतु उस में स्थिरता एवं दूरदर्शिता नाम की कोई चीज नहीं थी। वह फ्रांस में प्राचीन राजतंत्र के दोषों का निराकरण नहीं करना चाहता था यद्यपि वह प्रजा के हित का समर्थन अवश्य था किंतु दृढ़ निश्चय के अभाव और अस्थिर प्रकृति के कारण बहुत देश का हित न कर सका। वह सामंतों पादरियों एवं अपनी रानी मेरी आंतों आंत के इशारों पर नाश्ता था उसकी शासन में सर्वत्र भ्रष्टाचार का बोलबाला था। और सरकारी अधिकारी अनियंत्रित और स्वेच्छाचारी थे।
(5) आयोग के शासक-
योगी शासकों के कारण प्राची के प्रशासन में कुशलता का अभाव हो गया था। राज्य कर्मचारियों के कर्तव्यों का कोई स्पष्ट उल्लेख ना था कानून व्यवस्था असंगठित थी और उच्च अधिकारी रिश्वत मांग कर जनता का शोषण करते थे। लुई 14 बड़ा योग्य शासक था और उसने अपनी कार्यकुशलता से अपने समय में फ्रांस की दशा में काफी सुधार कर दिया था, किंतु उसका उत्तराधिकारी लुइ 15 बड़ा और विलासी व्यक्ति था। वह अपना अधिकांश समय भोग विलास में व्यतीत करता था और नाच तथा मंदिरों में डूबा रहता था। लुई 15वें की योग्यता विलासिता एवं फिजूलखर्ची से सरकारी कर्मचारी निर्भय होकर जनता पर अनेक प्रकार के अत्याचार किया करते थे और स्वयं भी भोग विलास का जीवन व्यतीत करते थे। इससे फ्रांसी के प्रशासन में अनेक प्रकार की बुराइयां उत्पन्न हो गई थी। लुई 15 का उत्तराधिकारी लुइ 16 देवी बड़ा उदाहरण सहित कई शासक था किंतु उसमें लुई 14 के समान दृढ़ता ना थी। उसमें आत्म निर्णय की शक्ति न थी और वह अपनी रानी मेरी अंतः अंतः दरबारियों के हाथ की कठपुतली था वह जनता का हित करना चाहता था और जनता को भी उससे बड़ी आशाएं थी परंतु अपनी और दूरदर्शिता और अस्थिरता के कारण हुई 16 जनता का हित करने में असफल रहा।
आर्थिक कारण (commercial purpose )
(1) ऋण का भार-
दीर्घकालीन युद्धों राजाओं की विलासिता एवं अपव्यय के कारण फ्रांस राष्ट्रीय ऋण के बाहर से दब गया था राज्य का व्यवस्थित होने के कारण राजकोष पूर्णतया रिक्त हो चुका था।
(2) दूषित कर प्रणाली -
फ्रांस में कर प्रणाली बड़ी दोषपूर्ण असमान वितरित तथा अन्याय पूर्ण थी। धनी वर्ग जो सुगमता पूर्वक कर को चुका सकता था कर से मुक्त था। और निर्धन वर्ग जिसके पास धन का हमेशा अभाव था को अपना पेट काटकर करो का भुगतान करना पड़ता था। सरकारी कर्मचारी करों की वसूली के लिए जनसाधारण पर भीषण अत्याचार करते थे और राजकीय करो से प्राप्त धन का अधिकांश भाग स्वयं हड़प जाते थे परिणाम स्वरूप राज्य को करो से पर्याप्त आय भी नहीं हो पाती थी।
(3) जनता पर करो का भार-
जनसाधारण करो के भार से दबा हुआ था। इसके अतिरिक्त विभिन्न तरीकों से उसका शोषण किया जाता था और अनिवार्य रूप से श्रम सेवा के लिए भी बाध्य किया जाता था।
सामाजिक कारण (social causes)
(1) अधिकार विहीन वर्ग -
इस वर्ग में किसान, मजदूर, कारीगर तथा मध्यम वर्ग के शिक्षित लोग शामिल थे। निम्न पादरी भी इसी वर्ग के अंतर्गत आते थे यह वर्ग अधिकारों से विहीन था किसानों तथा मजदूरों की दशा बड़ी सोचनीय थी। यह विशेषाधिकार संपन्न वर्ग के विभिन्न व्यक्तियों के शोषण का शिकार होते थे। जीवन -निर्वाह के लिए इन्हें कठोर परिश्रम करना पड़ता था लेकिन फिर भी पेट भर भोजन वह आवश्यक वस्त्र इनके लिए दुर्लभ थे इनका जीवन पशुओं से भी निम्न था यह राज्य सामान्य तथा चर्च सभी को कर देते थे। राजकीय व्यय का संपूर्ण भारत वर्ग के कंधों पर था। निम्न वर्ग तथा मध्यम वर्ग के असंतोष ने फ्रांस की राज्यक्रांति के विस्फोटक में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
(2) विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग-
इस वर्ग में फ्रांस के बड़े-बड़े सामान्य तथा उच्च पादरी सम्मिलित थे। इस वर्ग को अनेक प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे राज्य तथा चर्च के सभी उच्च पद इसी के अधिकार में थे तथा देश की लगभग 1/2 भूमि पर इन्हीं लोगों का स्वामित्व था। इनके पास लंबी चौड़ी जागीरे थी। जिन्हें देखने के लिए भी इनके पास समय नहीं था। यह वर्ग राजकीय करो और कर्तव्य दोनों से मुक्त था। इतना ही नहीं यह वर्ग जनसाधारण से कर बेगार भेद तथा नजर आने वसूल करने का अधिकार रखता था। ईश्वर की के लोग साधना जनता पर अनेक प्रकार के अत्याचार किया करते थे और उनका शोषण किया करते थे।
बड़े-बड़े सामान्य तथा उच्च पादरी विशाल भवनों में निवास करते थे और वैभव तथा विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के अत्याचार एवं शोषण की नीति से जनसाधारण में उनके विरुद्ध भीषण असंतोष व्याप्त था।
फ्रांस की क्रांति कब हुई?
फ्रांसीसी क्रांति 5 मई 1789 ई० को हुई थी।
फ्रांसीसी क्रांति के कारण क्या थे?
(1) भ्रष्ट शासन। (2) राजाओं की निरंकुशता। (3) दूषित कर प्रणाली। (4) लुइ 16वां का चरित्र।
फ्रांसीसी क्रांति ?
फ्रांसीसी क्रांति 5 मई 1789 ई० को हुई थी। जिसने शीघ्र ही भीषण रूप धारण कर लिया। इसके परिणाम स्वरुप फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र का अंत हो गया और लोकतांत्रिक शासन की स्थापना की गई।
फ्रांस की क्रांति के समय वहां का राजा कौन था ?
फ्रांस की क्रांति के समय वहां का राजा लुईस 16 वां था।
फ्रांस की क्रांति के आर्थिक कारण क्या थे?
1. ऋण का भार ज्यादा होना। 2. दूषित व बेकार कर प्रणाली। 3. जनता पर करो का भार।
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