INDIAN POLICE ACT 1861 – क्या आज भी 2025 के भारत में कोई ऐसा कानून चल रहा है, जिसका गठन अंग्रेजों ने किया था?
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं Indian Police Act 1861 की — एक ऐसा कानून जिसे 1857 की क्रांति के तुरंत बाद अंग्रेजों ने भारतीयों को नियंत्रित करने के लिए बनाया था। यह कानून उस समय लागू हुआ जब भारत में स्वतंत्रता नहीं थी, और इसका उद्देश्य था: “जनता की सेवा नहीं, बल्कि शासन बनाए रखना।”
आज, जब हम लोकतंत्र में जी रहे हैं, तो सवाल उठता है:
क्या इस पुरानी पुलिस व्यवस्था का कोई औचित्य बचा है?
आइए इस कानून की जड़ों, संरचना, आलोचना और सुधारों की ज़रूरत पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
Indian Police Act 1861 – एक औपनिवेशिक शुरुआत
1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम के बाद, ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि भारतीय जनता पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए एक सशक्त और “राजनिष्ठ” पुलिस व्यवस्था की आवश्यकता है। इसी सोच के साथ 1861 में यह कानून लाया गया।
इस कानून की कुछ मुख्य विशेषताएँ थीं:
पुलिस राज्य सरकार के अधीन होगी
अनुशासन, आदेश और रिपोर्टिंग का कड़ा ढाँचा तय किया गया
जनता के बजाय सरकार के प्रति जवाबदेही
यह कानून पूरी तरह से अंग्रेजों के शासन को बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया था, ना कि भारतीय नागरिकों की सेवा के लिए।
क्या यह कानून आज भी लागू है?
हाँ! भारत की अधिकांश राज्य पुलिस अभी भी इसी कानून के तहत काम करती है। हालांकि कई राज्यों ने अपने-अपने Police Act बनाए हैं (जैसे केरल, पंजाब, हरियाणा), लेकिन उनकी नींव अभी भी 1861 की सोच पर टिकी हुई है।
आज की पुलिस व्यवस्था में कई समस्याएँ इसी कानून से जुड़ी हैं:
राजनीतिक हस्तक्षेप
जवाबदेही की कमी
जनता से दूरी
डर का माहौल
Indian Police Act 1861 बनाम आज की ज़रूरतें – तुलना में फर्क साफ़ है:
बिंदु
- 1861 की सोच
- आज की ज़रूरत
- उद्देश्य
- जनता पर नियंत्रण
- जनता की सेवा
- जवाबदेही
- सरकार के प्रति
- जनता और कानून के प्रति
- ढाँचा
- औपनिवेशिक, सैन्य शैली
- लोकतांत्रिक, संवेदनशील
- पारदर्शिता
- नगण्य
- अनिवार्य
- स्वतंत्रता
- शासकों के अधीन
- स्वतंत्र और निष्पक्ष
सुप्रीम कोर्ट की पहल – Prakash Singh Case (1996)
1996 में सुप्रीम कोर्ट में प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार नाम से एक याचिका दायर की गई, जिसमें पुलिस सुधारों की माँग की गई। कोर्ट ने 2006 में 7 महत्वपूर्ण निर्देश दिए:
DGP की नियुक्ति मेरिट से हो, न कि राजनीतिक आधार पर
पुलिस प्रतिष्ठान बोर्ड का गठन
पुलिस शिकायत प्राधिकरण (Police Complaints Authority) बने
कार्यकाल तय किया जाए
अलग-अलग जांच और कानून व्यवस्था की शाखाएं हों
राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग का गठन
लेकिन ज़्यादातर राज्यों ने इन निर्देशों को आज तक पूरी तरह से लागू नहीं किया है।
सुधारों में देरी क्यों हो रही है?
सबसे बड़ा कारण है – राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी। पुलिस अगर स्वतंत्र और निष्पक्ष हो गई, तो सरकारों का उस पर नियंत्रण खत्म हो जाएगा।
नेताओं को “वफादार अफसर” चाहिए, जनसेवक नहीं।
ट्रांसफर-पोस्टिंग एक राजनीतिक हथियार बन चुका है।
पुलिस को जवाबदेह बनाने के लिए संसाधन और प्रशिक्षण की भी कमी है।
कुछ उदाहरण – कहाँ सुधार की कोशिश हुई?
केरल: Police Complaints Authority को सक्रिय किया गया है।
राजस्थान: पुलिस एक्ट का नया ड्राफ्ट तैयार किया गया, लेकिन पारित नहीं हो पाया।
झारखंड: पुलिस रिफॉर्म्स पर कार्यशालाएँ हुईं, पर ground level पर असर सीमित है।
क्या बदलाव होने चाहिए?
एक नया, आधुनिक और लोकतांत्रिक Police Act बने जो जनता की सेवा को प्राथमिकता दे
पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त किया जाए
जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा मिले
पुलिस प्रशिक्षण में संवेदनशीलता और मानवाधिकारों पर ज़ोर दिया जाए
तकनीकी सुधार जैसे body cams, digital FIR system लागू हों
निष्कर्ष:
Indian Police Act 1861 अब पुराना पड़ चुका है। यह एक ऐसा कानून है जो एक गुलाम भारत के लिए बना था, लेकिन एक स्वतंत्र भारत को चाहिए एक जन-केंद्रित, संवेदनशील और जवाबदेह पुलिस व्यवस्था।
अगर हमें अपने लोकतंत्र को और मज़बूत बनाना है, तो पुलिस सुधार केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक ज़रूरत बन चुकी है।
यह तभी संभव होगा जब हम जनता के रूप में demand करें कि हमें 21वीं सदी की पुलिस चाहिए, ना कि 19वीं सदी की छाया।
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