द्वितीय अफीम युद्ध के कारण, घटना और परिणाम- opium war

द्वितीय अफीम युद्ध

द्वितीय अफीम युद्ध (Second Opium War) 1856 से 1860 तक चला था। लोर्चा ऐरो घटना के आधार पर 26 अक्टूबर, 1854 ई० को ब्रिटिश नौसेना द्वारा कैंटन जाने वाले मार्ग पर चीनी सुरक्षा गढ़ों पर आक्रमण कर दिया गया। जब चीनी सरकार ने उत्तर में गोलीबारी की तो इसे अंग्रेजों ने अपने ऊपर आक्रमण की संज्ञा दी तथा युद्ध प्रारंभ हो गया। 

द्वितीय अफीम युद्ध की घटनाएं या घटनाक्रम 

(1) युद्ध का प्रारंभ

 कैंटन का गवर्नर येह (Yeh) एक कठोर और हठी व्यक्ति था। वह चाहता था कि बर्बर विदेशियों को बंदूक के निशाने पर समुद्र में धकेल दिया जाए। अतएव जब ब्रिटिश सरकार की प्रतिनिधि लॉर्ड एलगिल चीनी सरकार से वार्ता करने पेकिंग गया तो असफलता मिली। अंग्रेजों ने फ्रांस के सहयोग से कैंटन पर सन् 1857 में अधिकार स्थापित कर लिया। ऐह बंदी बना लिया गया। कैंटन से उत्तर की ओर आगे बढ़ती हुई ब्रिटिश और फ्रेंच सेनाएं टीटसीन तक पहुंच गई। चीनी शासन को सेनन को इस बात के लिए बाध्य होना पड़ा कि विदेशियों की संधि पर पुनः विचार करने की मांग को स्वीकार करें। अतएव पुरातन संधियों पर पुनः विचार के लिए वार्ता शुरू हुई।

(2) संधि के प्रयास 

समझौते पर वार्ताओं के प्रथम दौड़ में विदेशियों को अनेक सुविधाएं देने के संबंध में कहा गया पर संधि के प्रारूप को अंतिम रूप पेंकिंग से स्वीकृति प्राप्त करने के बाद दिए जाने की व्यवस्था थी। पेंकिंग में चीनी कूटनीतिज्ञों ने यह सोचा कि इस संधि के माध्यम से अंग्रेजी और फ्रांसीसी सरकार साम्राज्यवादी लिप्साएँ पूर्ण करना चाहती हैं, अतः उन्होंने इस संधि की धाराओं को अस्वीकृत कर दिया।

(3) टीटसीन की सन्धि 

टीटसीन की संधि 1842-44 ई० में हुई पश्चिम के साथ संधियों के सिद्धांत और सुविधाओं का विस्तार थी। नई संधियों के विषय में चारों राष्ट्रो से हुए समझौते के अनुसार एग्री व्यवस्था हुई—

  1. पश्चिम के रसों को पेंकिंग में राजदूत रखने का अधिकार प्रदान किया गया।
  2. चीन ने 11 नए बंदरगाह व्यापार के लिए खोल दिए।
  3. विदेशियों को चीन के आंतरिक भागों में यात्रा करने की सुविधा मिली।
  4. मिशनरियों की सुरक्षा का आश्वासन सरकार ने दिया।
  5. फौजदारी के मामलों में भी विदेशियों के देशोत्तर अधिकारों की संपूर्ण व्यवस्था की गई।
  6. चीन के ब्रिटेन को 40 लाख ताएल तथा फ्रांस को 20 लाख ताएल युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में देना स्वीकार किया। 

(4) पेकिंग पर आक्रमण 

विदेशी व्यापार संधि वार्ता की असफल हो जाने पर अंग्रेज ससैन्य आगे बढ़े। मार्ग में लूटमार करते हुए शीघ्र पेकिंग पहुंचे। मंचू सम्राट हसेल फेंग (Hsien Feng) को पेकिंग से भाग कर जेहोल में शरण लेनी पड़ी। विजेता ब्रिटिश तथा फ्रांसीसी सेनाओं ने पेकिंग में अत्यंत क्रूर व्यवहार किया। सम्राट का ग्रीष्मकालीन महल जलाकर भस्म कर दिया गया। राष्ट्रीय संग्रहालय तथा पुस्तकालय नष्ट कर दिए गए, नगर लूटा गया। चीनी सम्राट को पश्चिम के इन शक्तिशाली रसों की संधि की शर्तों को मानने के लिए बाध्य होना पड़ा। अतः सन् 1860 में पश्चिम की चार प्रमुख शक्तियां इंग्लैंड रूस अमेरिका व फ्रांस के साथ पेकिंग समझौता हुआ। 

द्वितीय अफीम युद्ध के कारण

(1) ईसाई पादरी को मृत्युदंड 

चीन में फ्रांस के अनेक पादरी आंतरिक भागों में जनता को धर्मांतरित करके अपने धर्म का प्रचार करने लगे। इन परियों के प्रति चीनी सरकार का व्यवहार अच्छा नहीं था। एक फ्रांसीसी पादरी आगस्टे चेपडीलेन (Abbe Chapdelaine) पर चीनी सरकार ने षड्यंत्र का आरोप लगाया। उसे मिशनरी ने स्वीकार किया कि उसने अपने चीनी अनुयायियों को यह सिखाया है कि वह दमन के विरुद्ध फ्रांस को अपना मुक्तिदाता और सहयोगी समझें। चीनी न्यायाधीश के अनुसार यह उसकी अपराध की स्वीकारोक्ति थी। संधि के अनुसार भी ईसाई मिशनरियों को पांच उन्मुक्त बंदरगाहों की अतिरिक्त चीन की आंतरिक भाग में प्रवेश की आज्ञा नहीं थी।

(2) लोर्चा ऐरो घटना

विदेशी व्यापारियों ने अपनी व्यापारिक सुविधा के लिए चीन के अनेक स्थानीय जहाज किराए पर लिए थे। इन जहाजों पर विदेशी अपनी सरकारों के झंडे लगाकर पासपोर्ट दिया करते थे। चीनी सरकार ने इस व्यवस्था को स्वीकृति दी थी। विदेशी व्यापारियों ने इस सुविधा का दुरुपयोग कर लूटमार व तस्करी का कार्य प्रारंभ कर दिया। चीनी पदाधिकारी यह पहचान करने में असमर्थ थे कि कौन सा जहाज विदेशी पताका का और कौन गैर-कानूनी प्रयोग कर रहा है। लोर्चा ऐरो जहाज इस प्रकार की सामाजिक कार्यवाही के लिए बदनाम था। जहाज का स्वामी हांगकांग का निवासी चीनी मल्लाह था। वह स्वयं को ब्रिटिश नागरिक कहता था। 8 अक्टूबर 1856 को जब लोर्चा ऐरो कैंटीन में नदी में खड़ा था, लूट के अभियोग में बंदी बना लिया। वाणिज्य दूत हैरी पाक्रस ने तुरंत बंदी चालकों की रिहाई की मांग की। उन्होंने तर्क दिया था कि लोर्चा ऐरो जहाज हांगकांग में पंजीकृत हुआ था। उसे पर ब्रिटिश पताका लगी हुई थी। चीनी अधिकारियों ने बगैर अनुमति के इस उतरकर संपूर्ण ब्रिटिश राज्य को अपमानित किया है।

प्रथम अफीम युद्ध के परिणाम

(1) फ्रांस व ब्रिटेन के छोटे से नौ सैनिक बेडे़ ने शक्तिशाली विशाल धन-धन वाले चीन को पराजित कर दिया।

(2) चीन की प्रतिष्ठा समाप्त हो गई।

(3) आंतरिक विद्रोह वह अशांति आदि से पुनः चीन का जन्म जीवन अस्त-व्यस्त हो गया।

(4) अपनी आर्थिक नीति पर चीन का नियंत्रण समाप्त हो गया।

(5) सीमा शुल्क संबंधी विदेशी निरीक्षणालय की स्थापना से तटकर जैसी नीति पर चीन का कोई अधिकार ना रहा।

(6) सीमा शुल्क के रूप में माल की कीमत 5% कर विदेशियों द्वारा निर्धारित किया गया था जिसे परिवर्तित करने का अधिकार विदेशी शक्तियों को था।

(7) पश्चिमी व्यापारियों का माल चीन के किसी भी आंतरिक भाग में बिना किसी रोक-टोक वह अन्य प्रकार का कर दिए जा सकता था।

(8) इसके विपरीत चीन के स्वदेशी उद्योगपतियों को अपने माल पर विभिन्न प्रकार की चुंगी तथा कर देने पड़ते थे।

(9) चीन की यह स्थिति राष्ट्रीय गौरव एवं स्वतंत्रता की दृष्टि से अपमानजनक थी। साथ ही इस व्यवस्था से पश्चिम उद्योगपतियों को चीनी उद्योगपतियों की प्रतिद्वंद्विता में लाभ हुआ।

(10) उपरोक्त व्यवस्था के परिणाम स्वरूप चीन में निर्मित माल की अपेक्षा विदेशी माल बाजार में सस्ते दामों पर बिकने लगा। इससे चीन में उद्योग धंधों के विकास में भारी बाधा उत्पन्न हुई।

(11) चीन के समस्त समुद्री व्यापारिक मार्ग व माल की ढुलाई भी विदेशी नियंत्रण में आ गई।

(12) पश्चिमी व्यापारियों ने बैंक स्थापित किए जिनके माध्यम से चीन की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने में सहायता मिली।

click hereप्रथम अफीम युद्ध के के कारण, परिणाम और पूर्ण जानकारी 


impo-Short questions and answers 

द्वितीय अफीम युद्ध कब हुआ?

द्वितीय अफीम युद्ध 1856 से 1860 तक हुआ।

द्वितीय अफीम युद्ध का अंत किस संधि के अनुसार हुआ?

द्वितीय अफीम युद्ध का अंत टीटसीन की सन्धि के अनुसार हुआ।

द्वितीय अफीम युद्ध के कारण?

द्वितीय अफीम युद्ध के कारण - चीन में फ्रांस के अनेक पादरी आंतरिक भागों में जनता को धर्मांतरित करके अपने धर्म का प्रचार करने लगे। इन परियों के प्रति चीनी सरकार का व्यवहार अच्छा नहीं था। एक फ्रांसीसी पादरी आगस्टे चेपडीलेन (Abbe Chapdelaine) पर चीनी सरकार ने षड्यंत्र का आरोप लगाया।

द्वितीय अफीम युद्ध के समय चीन का सम्राट कौन था?

द्वितीय अफीम युद्ध के समय चीन का सम्राट डाओगांग था।

द्वितीय अफीम युद्ध के परिणाम?

द्वितीय अफीम युद्ध के परिणाम - (1) फ्रांस व ब्रिटेन के छोटे से नौ सैनिक बेडे़ ने शक्तिशाली विशाल धन-धन वाले चीन को पराजित कर दिया। (2) चीन की प्रतिष्ठा समाप्त हो गई। (3) आंतरिक विद्रोह वह अशांति आदि से पुनः चीन का जन्म जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। (4) अपनी आर्थिक नीति पर चीन का नियंत्रण समाप्त हो गया।

द्वितीय अफीम युद्ध की घटनाएं?

द्वितीय अफीम युद्ध की घटनाएं या घटनाक्रम - (1) युद्ध का प्रारंभ (2) संधि के प्रयास (3) टीटसीन की सन्धि (4) पेकिंग पर आक्रमण

द्वितीय अफीम युद्ध का अंत हुआ?

द्वितीय अफीम युद्ध का अंत 1860 ई० में हुआ।

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