उदारवाद के गुण एवं दोष
उदारवाद का मतलब; उदारवाद का सारभूत अर्थ है— ‘स्वतंत्रता’ अर्थात बाह्य प्रतिबंधों से व्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने विश्वास के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता। लेकिन इस संदर्भ में एक प्रश्न यह होता है कि यह स्वतंत्रता किसकी है ? लड़की ने इस बारे में स्पष्ट करते हुए लिखा है कि - “जिस स्वतंत्रता का उदारवाद ने समर्थन किया वह सर्व व्यापक नहीं थी बल्कि व्यवहार में केवल उन लोगों तक सीमित थी जिनके पास अपनी सुरक्षा के लिए संपत्ति थी।”
उदारवाद के गुण और दोष
उदारवाद के गुण
(1) मानववादी दर्शन
उदारवाद व्यक्ति के व्यक्तित्व को महत्व तथा गौरव प्रदान करता है। वह राजू को ऐसी आवश्यक देसाई प्रदान करने की वकालत करता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें। यह व्यक्ति को शादी तथा राज्य को व्यक्ति के कल्याण का साधन मानता है।
(2) लचीलापन
उदारवाद एक लचीला सिद्धांत है। इस कारण इसमें अपने आप को सुधारने व बदलने की या अपने को समय अनुकूल बनाने या आवश्यकता अनुसार ढालने की असीम शक्तियां हैं। यही कारण है कि इसमें वर्तमान से लोकतंत्र और समाजवाद जैसी अवधारणाओं को आत्मसात कर दिया है।
(3) व्यक्ति की स्वतंत्रता ओं का समर्थन करना
उदारवाद व्यक्ति की स्वतंत्रता ओं का समर्थन करता है। उसने ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व’ के नारे को बुलंद किया है यह उपनिवेशवाद साम्राज्यवाद और निरंकुशवाद का विरोधी है तथा लोकतंत्र समाजवाद तथा लोक कल्याणकारी राज्य का समर्थक है।
(4) आर्थिक प्रगति का दर्शन
उदारवाद को आर्थिक प्रगति का दर्शन कहा जा सकता है क्योंकि इसने यूरोप के विभिन्न राज्यों तथा अमेरिका के औद्योगिक विकास को अत्यधिक प्रोत्साहित किया और इसके परिणाम स्वरूप इस क्षेत्र के निवासियों ने आर्थिक क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति भी की है। और इसके द्वारा ही मुफ्त व्यापार पर बल दिया गया। इससे विश्व के विभिन्न क्षेत्र परस्पर नजदीक आये और एक विश्व बाजार का निर्माण हुआ।
(5) लोकतंत्र का समर्थक
उदारवाद के विशेष अधिकारों पर आधारित पुरानी व्यवस्था का अंत कर स्वतंत्रता समानता तथा लोकतंत्र का समर्थन किया है। आज की संसदीय संस्थाएं तथा वसमत अधिकार के सिद्धांत उदारवादी दर्शन की ही देन है।
(6) धर्मनिरपेक्षता पर बल
उदारवाद ने धर्म और राजनीति को एक दूसरे से पृथक कर धर्मनिरपेक्षता का मार्ग प्रशस्त किया है, जो आज के प्रगतिशील युग का एक बहुत बड़ा प्रतीक चिन्ह है।
(7) राष्ट्रीय स्वाधीनता का दर्शन
उदारवाद में राष्ट्रीय स्वाधीनता की तत्व विद्यमान है। इसने राष्ट्रीय आत्म निर्णय के सिद्धांत का समर्थन कर विभिन्न जातियों की राष्ट्रीय स्वाधीनता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उदारवाद के दोष या उदारवाद की आलोचनाएं
(1) सुधारवाद का विरोध
उदारवादी समाज की पुरानी परंपराओं, रूढ़ियों, रीति-रिवाजों में आवश्यकता पड़ने पर सुधार करना आवश्यक समझते हैं। किंतु वर्क काई हो विश्वास है कि पुरानी व्यवस्थाएं अनेक युगों की अनुभव और बुद्धिमता का निचोड़ होती है। इसमें मौलिक सुधार करने वाला राज्य विनाश के पद पर अक्सर होता है मानव समाज या राज्य की पुनर्रचना किसी एक व्यक्ति या पीढ़ी का काम नहीं है क्योंकि वह अनेक पीढ़ियों के बुद्धिमता पूर्ण अनुभव से बना है। अतः उसमें सुधार के प्रयास नहीं किए जाने चाहिए।
(2) प्राकृतिक अधिकारों का विरोध
बर्क ने प्रारंभिक उदारवाद के प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का भी खंडन किया है। यह बुधिया तड़के से परे मानवीय अधिकारों की सत्ता को स्वीकार नहीं करता था। उसके मतानुसार व्यक्ति के केवल वही अधिकार माने जा सकते हैं जो राज्य अपने नागरिकों को कानून द्वारा प्रदान करता है।
(3) लचीली एवं अस्थिर अवधारणा
उदारवाद एक अत्यंत लचीली, अस्थिर और अनिश्चित अवधारणा है। इसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी विचारों की किसी भी ओर तोड़ा- मरोड़ा जा सकता है। लांक ओकशांट तक जितने भी लेखकों ने व्यक्ति की स्वतंत्रता को मूल्यवान समझ कर उसके संरक्षण की बात कही है उसमें केवल स्वतंत्रता की नीतियों और प्रोग्रामों संबंधी भेद ही नहीं पाए जाते बल्कि सिद्धांतों संबंधी विधि पाए जाते हैं।
(4) राज्य के संबंध में भ्रामक धारणा
उदारवादी राज्य को मनुष्य द्वारा बनाया गया एक कृतिम संगठन समझते हैं। किंतु वर्क का मत है कि राज्य का जन्म और विकास जीव शास्त्रीय प्रक्रिया द्वारा धीरे-धीरे होता है। दूसरे, उदारवादी राज्य को एक आवश्यक बुराई मानते हैं। परंतु यह धारणा गलत है। राज्य एक बुराई नहीं बल्कि धनात्मक अच्छाई है। तीसरी, उदारवाद राज्य की गृह कार्य कुशलता में विश्वास रखता है। भले ही आरंभिक उदारवाद ने राज्य को व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक माना; परंतु जैसे-जैसे राजनीतिक सत्ता मध्यवर्ग के हाथ आती गई राज्य व्यक्ति के विकास में बाधक न रहकर सहायक और कल्याणकारी बनता गया। आज उदारवाद के अनुसार राज्य का कार्य समाज के विभिन्न हितों में सामंजस्य स्थापित करके एकता व्यवस्थित तथा स्थायित्व स्थापित करना है।
(5) व्यक्ति को अनुचित महत्व प्रदान करना
उदारवाद व्यक्ति को साधना और राज्य को साधन मानते हुए व्यक्ति के अधिकारों और स्वतंत्रता पर आवश्यकता से अधिक बल देता है। इसके परिणाम स्वरूप यह समाज और राज्य के हितों की उपेक्षा करता है। किंतु एक आदर्श समाज वही है जिसमें व्यक्ति और राज्य के हितों का समन्वय हो कुछ व्यक्तियों के हितों के लिए राज्य के व्यापक हितों को बलि की बेदी पर नहीं चढ़ा दिया गया हो।
(6) मानव विवेक पर अत्यधिक बल
उदारवाद बुद्धि वाद है। यह मानव विवेक पर अत्यधिक बल देकर मानव इच्छा तथा मानव की उपेक्षा करता है जबकि मानव ना तो विवेक का दास है और न भावनाओं का उसके कार्यों में विवेक और भावना दोनों का मिश्रण होता है ।
(7) पूंजीवादी दर्शन
उदारवाद की सबसे बड़ी आलोचना आर्थिक आधार पर की जाती है। उदारवाद पूंजीवाद का आर्थिक दर्शन है। समाजवादी और मार्क्सवादी विचारकों का मत है कि उदारवाद राज्य के लिए और हस्तक्षेप की नीति को आदर्श बताकर आर्थिक क्षेत्र में पूजी पतियों को मजदूरों का शोषण करने की खुली छूट देता है। इस आलोचना को देखते हुए बीसवीं सदी के प्रारंभ से उदारवाद ने इंग्लैंड में अपने पुराने स्वरूप को बदलना प्रारंभ किया और मजदूरों के हित के लिए राज्य द्वारा बेकारी बुढ़ापे बीमारी आदि के बी में न्यूनतम मजदूरी तथा सामाजिक सुरक्षा की विभिन्न अवस्थाएं करने के लिए राज्य के हस्तक्षेप को अति आवश्यक माना है।
सार - इन सभी विवेचनाओं से स्पष्ट है कि 19वीं सदी की औद्योगिक क्रांति से लेकर आज तक उदारवाद के स्वरूप में कई परिवर्तन आए हैं व्यक्तिगत विकास स्वतंत्रता अधिकार समानता संपत्ति लोकतंत्र की धारणाएं उदारवाद की पर्यायवाची मानी जाती है। सामंतवाद के विरुद्ध उदारवाद का स्वरूप क्रांतिकारी था, परंतु आज यह यही स्थिति का समर्थक है। इसका आधार कल्याणकारी बनना है। जो आज समाज में झगड़ों का निपटारा करके और संघर्षों को शांत करके संतुलन और सामंजस्य से लगाना चाहता है। परंतु इन सब परिवर्तनों के बावजूद कल्याणकारी राज्य जन साधारण को आर्थिक विपत्तियों से मुक्त एक स्वतंत्र जीवन प्रदान करने में सफल नहीं हुआ है।
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