मार्क्सवाद क्या है - परिभाषा, सिद्धांत

 मार्क्सवाद (marxism)

कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1819 को जर्मनी में हुआ। समाजवाद को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने का श्रेय कार्ल मार्क्स की जाता है। मार्क्स से पहले के समाजवादी स्वप्नलोकी समाजवादी थे। कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाजवाद वैज्ञानिक कहा गया है। कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाजवाद एक काल्पनिक विचारधारा मात्र में होकर विधिवत रूप से प्रतिपादित एक व्यवहारिक दर्शन है। कार्ल मार्क्स ने समाजवाद को स्पष्ट करने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों तथा इतिहास के विभिन्न युगों की आर्थिक सामाजिक तथा राजनीतिक संरचनाओं को अपने विश्लेषण का आधार बनाया उसने तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि एक दिन विश्व में समाजवाद अवश्य आएगा। क्योंकि समाज का आर्थिक परिवर्तन की दिशा मैं हो रहा है उससे यह निश्चित रूप से एक समाजवादी (साम्यवादी) व्यवस्था को जन्म देगा। प्रसिद्ध इतिहासकार टेलर ने अपने शब्दों में कहा है “मार्क्सवाद में सामाजिक परिवर्तन करने वाली शक्तियों की जो व्यवस्था की गई है वह उसे वैज्ञानिकता प्रदान करती है।”

मार्क्सवाद क्या है

कार्ल मार्क्स ने जिसे सिद्धांतों के आधार पर समाजवाद का विवेचन किया है वह पारस्परिक रूप से संबंध है। कार्ल मार्क्स आधुनिक युग का ऐसा दार्शनिक है जिससे ना केवल समाजवादी विचारधारा का प्रतिपादन किया है अभी तो सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने के वैज्ञानिक नियमों का भी विश्लेषण किया है। कार्ल मार्क्स ने अपने पूर्ववर्ती स्वप्नलोक की समाजवादियों की भांति कल्पना का सहारा नहीं लिया वरन अपने सिद्धांत का विश्लेषण करने में उसने दर्शन इतिहास तथा अर्थशास्त्र का पूरा प्रयोग किया। उसका समाजवाद एक क्रम बंद समाजवादी दर्शन है।

मार्क्सवाद की परिभाषाएं 

मार्क्सवाद की परिभाषा —

लौस्की के शब्दों में, “किसी भी पहलू से हम देखें उसका चिंतन सामाजिक दर्शन के इतिहास में स्वयं एक युग है उसके विषय में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने सामने बात को अस्त-व्यस्त रूप में पाया तथा उसे एक आंदोलन बना दिया। कारवां द्वारा साम्यवाद को एक दर्शन तथा गति प्राप्त हुई।”

टेलर के शब्दों, में “मार्क्सवाद में सामाजिक परिवर्तन करने वाले शक्तियों की जो व्यवस्था की गई है वह उसे वैज्ञानिकता प्रदान करती है।”

प्रो० जोड़ के शब्दों में, “मार्क्स प्रथम समाजवादी लेखक हैं जिस के कार्य को वैज्ञानिक कहा जाता है।”

मार्क्सवाद सिद्धांत क्या है 

मार्क्स के दर्शन के प्रमुख सिद्धांत

(1) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत 

(2) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का सिद्धांत 

(3) वर्ग- संघर्ष का सिद्धांत 

(4) धर्म संबंधी सिद्धांत

(5) पूंजीपतियों के विनाश का सिद्धांत 

(6) राज्य और शासन संबंधी सिद्धांत 

(7) प्रजातंत्र और राष्ट्रवाद के संबंध में धारणा 

(8) मूल्य का सिद्धांत


(1) द्वंदात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत

 द्वंदात्मक भौतिकवाद मक्सी के दर्शन का मुख्य आधार है। मार्क्स ने बंद वाद के सिद्धांत को हीगल से ग्रहण किया। कॉल मार स्वयं लिखा था कि मैंने ईगल के द्वंद वाद को सिर के बल खड़ा पाया और मैंने उसे उठाकर पैरों के बल खड़ा कर दिया। कार्ल मार्क्स के धन्यवाद का मूल तत्व 'पदार्थ' (Matter) है और उसके अनुसार भौतिकवाद ही आदर्श है कार्ल मार्क्स के सहयोगी एंजिल्स ने भौतिक तत्वों में द्वंद्व अधिक पद्धति को दिखाने का प्रयत्न किया। उसने गेहूं के विकास को दो अनुवादित पद्धति के आधार पर विवेचित किया। कार्ल मार्क्स ने कहा कि आर्थिक शक्तियां ही संपूर्ण परिवर्तन के कारण होते हैं आर्थिक शक्तियों में परिवर्तन के कारण आर्थिक संबंधों में परिवर्तन हो जाता है और यह परिवर्तन समाज की सामाजिक आर्थिक संरचना में परिवर्तन कर देता है जिससे एक नए युग का सूत्रपात होता है। मार्क्स ने स्पष्ट किया कि आर्थिक शक्तियां (Forces)  दो प्रकार की होती हैं।

(क) स्थाई आर्थिक तत्व- भूमि कारखाने खाने तथा अन्य प्राकृतिक संपदा आदि।

(ख) गतिशील आर्थिक तत्व- व्यक्ति का मस्तिष्क विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान आदि।

(2) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का सिद्धांत

 मार्क्सवाद अपने राजदर्शन में मानव जीवन से संबंधित सभी संस्थाओं को आर्थिक दशाओं से प्रभावित मानता है। उसका विचार है कि हमारे संस्कृति किस प्रकार की होगी यह हमारे आर्थिक दशा पर निर्भर करता है। मार्क्स ने अपनी इस आर्थिक व्याख्या क्या आधार पर अब तक के और भावी मानवीय इतिहास की 6 अवस्थाएं बतलाई हैं इनमें प्रथम 4 अवस्थाओं से समाज गुजर चुका है और शेष दो अवस्थाएं अभी आनी शेष है परंतु कुछ देशों में पांचवी अवस्था भी आ चुकी है रूस चीनी तथा यूरोप के कुछ पूर्वी देश पांचवी अवस्था में है मानवीय इतिहास की ये 6 अवस्थाएं निम्न प्रकार है- 

(१) आदिम साम्यवादी युग 

(२) दास युग 

(३) सामंती युग

(४) पूंजीवादी युग

(५) सर्वहारा वर्ग की तानाशाही का युग 

(६) साम्यवादी युग 

(3) वर्ग- संघर्ष का सिद्धांत

 इतिहास की आर्थिक व्याख्या के आधार पर मक्सी का मत है कि समाज में सदैव ही दूर विरोधी वर्गों का अस्तित्व रहा है। मानव इतिहास के विकास क्रम में एक युग से दूसरे युग में जो परिवर्तन हुआ है वह वर्ग संघर्ष के कारण ही हुआ है मार्क्सवाद के अनुसार आज तक के संपूर्ण समाज का इतिहास वर्ग- संघर्ष का इतिहास है। वर्तमान युग पूंजीवादी युग है। जिसमें समाज 2 बड़े वर्ग पूजी पतियों तथा श्रमिकों में विभक्त है तथा पूंजीपति श्रमिकों का शोषण करते हैं।

(4) धर्म संबंधी सिद्धांत

 मार्क्स धर्म विरोधी था। उसका विश्वास था कि धर्म व्यक्ति को अंधविश्वासी मानता है और बनाता है। और धर्म के कारण व्यक्ति उसी प्रकार पथभ्रष्ट हो जाता है जिस प्रकार वह अफीम खाकर नशे में पथभ्रष्ट हो जाता है। मार्क्सवाद अपने आध्यात्मिक वाद मैं केवल विवेक को ही प्रधानता देता है। उसका मत है कि व्यक्ति को वास्तविक स्वतंत्रता की और उसी समय मिल सकती है, जब व्यक्ति धार्मिक अंधविश्वासों से मुक्त होकर विवेकपूर्ण चिंतन करें।

(5) पूंजीपतियों की विनाश का सिद्धांत

कार्ल मार्क्स इस बात में विश्वास करता है की पूंजी पतियों में पारस्परिक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होगी, उस प्रतियोगिता के परिणाम स्वरूप पूंजी का केंद्रीकरण केवल थोड़े ही पूंजी पतियों के हाथों में स्थिर होगा और छोटे-छोटे पूंजीपति श्रमिकों से मिलकर शक्तिशाली पूंजी पतियों का विरोध करेंगे तथा संयुक्त शक्ति के द्वारा पूंजीवाद को समाप्त कर देंगे। इस प्रकार मार्क्स की यह मान्यता है कि पूंजीवाद में ही उसके विनाश के कारण उपस्थित रहते हैं।

मार्क्सवाद क्या है - परिभाषा, सिद्धांत

(6) राज्य और शासन संबंधी सिद्धांत

 कार्ल मार्क्स का मत है कि राजीव व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है, वह एक ऐसी चक्की है जो व्यक्ति के हितों को पीस डालती है और सामाजिक वर्ग के हितों में बाधक होती है इसलिए काल मार्च सामाजिक वर्गों को भी व्यक्ति के हितों में बाधक मानता है इसलिए वह एक ऐसे समाज की कल्पना करता है जो वर्ग विहीन और राज्यविहीन समाज होगा। उनका विचार था कि सर्वप्रथम सशस्त्र क्रांति द्वारा पूंजी पतियों का विनाश होगा और सर्वहारा वर्ग के अधिनायक तंत्र की स्थापना होगी जिससे शोषण का अंत होगा इस प्रकार एक वर्ग विहीन समाज की स्थापना होगी इसके पश्चात धीरे-धीरे राज्य का अंत हो जाएगा और एक पूर्ण साम्यवादी समाज स्थापित होगा जो राज्य विहीन और वर्ग विहीन होगा।

(7) प्रजातंत्र और राष्ट्रवाद के संबंध में धारणा 

कार्ल मार्क्स प्रजातंत्र और राष्ट्रवाद की भी आलोचना करता है। वह प्रजातंत्र आत्मक संस्थाओं को धनी को की समस्या कहता है। उसका विचार है कि प्रजातंत्र आत्मक प्रणाली से श्रमिकों के हितों की भी सुरक्षा नहीं हो सकती है और तो इन्हें नष्ट कर देना चाहिए। कार्ल मार्क्स राष्ट्रवाद को भी और स्वीकार करता है उसका विचार है कि मजदूरों का कोई देश नहीं होता है। उनका नारा था— विश्व के श्रमिकों एक हो जाओ। कार्ल मार्क्स अंतरराष्ट्रीय वाद में विश्वास करता है।

(8) मूल्य का सिद्धांत

कार्ल मार्क्स का मत है कि किसी वस्तु के उत्पादन में श्रम का मूल्य और वस्तु पर लगाए गए कच्चे माल का मूल्य महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। जब वस्तु उत्पादित होकर बाजार में आती है तो पूंजीपति वर्ग वस्तु पर लगे हुए कुल मूल्य में से भी अधिक वस्तु का मूल्य प्राप्त करता है। वस्तु की लागत वस्तु को बेचने की कीमत में जो अंतर होता है उसे कॉल मार से उन्हें वस्तु का अतिरिक्त मूल्य कहां है। यह अतिरिक्त मूल्य पूंजीपति की जेब में ही जाता है तथा श्रमिकों को उनका कोई अंश नहीं मिलता है। कार्ल मार्क्स का  यह भी मत है कि अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत के कारण ही पूंजीपति वर्ग श्रमिक वर्ग का शोषण करता है।


impo-Short questions and answers 

कार्ल मार्क्स का जन्म कब हुआ?

कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1819 को जर्मनी में हुआ।

मार्क्सवाद की परिभाषा?

किसी भी पहलू से हम देखें उसका चिंतन सामाजिक दर्शन के इतिहास में स्वयं एक युग है उसके विषय में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने सामने बात को अस्त-व्यस्त रूप में पाया तथा उसे एक आंदोलन बना दिया। कारवां द्वारा साम्यवाद को एक दर्शन तथा गति प्राप्त हुई।

मार्क्स के दर्शन की प्रमुख सिद्धांत?

(1) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत (2) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का सिद्धांत (3) वर्ग- संघर्ष का सिद्धांत (4) धर्म संबंधी सिद्धांत (5) पूंजीपतियों के विनाश का सिद्धांत (6) राज्य और शासन संबंधी सिद्धांत (7) प्रजातंत्र और राष्ट्रवाद के संबंध में धारणा (8) मूल्य का सिद्धांत

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