परीक्षण के 10 महत्वपूर्ण विधियां

परीक्षण की विधियां 

परीक्षण उतना ही पुराना है जितना कि स्वयं उद्योग। कर्मचारियों को दिए जाने वाली परीक्षण की कोई एक निश्चित पढ़ती नहीं है बल्कि व्यवहार में प्रशिक्षण देने की अनेक विधियां अपनाई जाती हैं जिनमें से प्रमुख विधियां निम्न लिखित है — 

औद्योगिक संस्थान में कर्मचारियों के परीक्षण की महत्वपूर्ण विधियां 

(1) कार्य पर प्रशिक्षण 

कार्य पर प्रशिक्षण देने का मुख्य उद्देश्य कार्य वास्तविक परिस्थितियों को कम से कम समय में कर्मचारियों को ग्रहण कराना है। जब कर्मचारी कार्य पर प्रशिक्षित किए जाते हैं तो वे स्वयं समस्त क्रियाओं को देखते हैं और क्रिया द्वारा सीखते हैं। इससे कर्मचारी को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव होता है तथा प्रशिक्षण व्यय भी काफी न्यूनतम होता है। 

(2) प्रशिक्षण केन्द्रों पर प्रशिक्षण 

विश्व के समस्त राष्ट्रों में सरकार द्वारा तथा निजी व्यावसायियों द्वारा पेशे में तकनीकी ज्ञान के विकास के लिए तकनीकी प्रशिक्षण केन्द्र खोले गए हैं जहाँ पर प्रशिक्षण के इच्छुक नवयुवक तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। यह प्रशिक्षण केन्द्र किसी एक व्यवसाय से सम्बन्धित शिक्षा देते हैं। इन प्रशिक्षण केन्द्रों में कर्मचारियों को सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों ही प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है परन्तु व्यावहारिक है प्रशिक्षण पर अधिक बल दिया जाता है। इस प्रकार के प्रशिक्षण से उत्पादन कार्य में बाधा नहीं पड़ती, क्योंकि प्रशिक्षण कारखाने से अलग दिया जाता है। 

(3) अनुभवी कारीगरों द्वारा प्रशिक्षण 

ऐसी संस्थाएँ जिनमें अनुभवी कारीगरों को सहायकों की आवश्यतकता होती है तो वह उपयुक्त व्यक्ति को अपने साथ रखकर और कार्य के विभिन्न भागों को उनसे अपने निर्देशन में सम्पन्न कराते हुए प्रशिक्षित करते हैं। यह प्रशिक्षण विधि उन विभागों के लिए उपयुक्त है जिनमें कारीगर उत्तरोत्तर कृत्यों द्वारा क्रियाओं की एक श्रृंखला निष्पादित करने के लिए आगे बढ़ता है। 

(4) निरीक्षकों द्वारा प्रशिक्षण 

निरीक्षकों द्वारा प्रशिक्षण देने से प्रशिक्षणार्थियों को अपने अधिकारियों से परिचित होने का सुअवसर मिलता है और निरीक्षकों को भी कार्य सम्पादन के दृष्टिकोण से प्रशिक्षणार्थियों की योग्यताओं एवं सम्भावनाओं को परखने का अवसर मिलता है। 

(5) शिक्षार्थी प्रशिक्षण 

शिष्य के रूप में शिक्षा देना प्रशिक्षण का सबसे प्राचीन एवं सुधरा हुआ ढंग है। इसके अन्तर्गत कार्य सोखने वाले को कार्य की सभी बारीकियाँ विशेषज्ञों द्वारा समझाई जाती हैं, इसमें प्राय: 6 माह, 1 वर्ष अथवा इससे भी अधिक समय तक प्रशिक्षण अवधि चलती है। इसीलिए इस अवधि में प्रशिक्षु को उद्योगपति द्वारा कुछ वेतन भी दिया जाता है, यही कारण है कि प्रशिक्षु को निश्चित अवधि में पूर्ण कुशल बनाने का प्रयत्न किया जाता है। 

(6) द्वार कोष्ठ प्रशिक्षण 

इस पद्धति में एक बड़े कमरे में जिसमें फैक्ट्री के अन्दर वास्तविक उत्पादन में काम आने वाली मशीनों के नमूने की मशीनें लगी होती हैं। प्रत्येक कर्मचारी को वास्तविक उत्पादन में लगने से पूर्व इन नमूने वाली मशीनों पर एक निश्चित अवधि तक कार्य करना पड़ता है। यहाँ उसे उच्च प्रशिक्षण प्राप्त फोरमैन अथवा प्रशिक्षक कार्य सिखलाते हैं। ऐसे प्रशिक्षण में सिद्धान्तों और अभ्यासात्मक दोनों पर हर प्रकार का प्रशिक्षण मिल जाता है। परन्तु यह पद्धति अधिक खर्चीली है। भारत में रेलवे संस्थान इस प्रकार का प्रशिक्षण देती है।

(7) संयुक्त प्रशिक्षण

इस प्रकार का प्रशिक्षण तकनीकी एवं व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा मिलकर अपने सदस्य प्रशिक्षणार्थियों को संयुक्त रूप से दिया जाता है। इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य प्रशिक्षणार्थियों को सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान उलब्ध कराना होता है। वास्तव में इस पद्धति में समय अधिक लगता है परन्तु प्रशिक्षणार्थियों के ज्ञान एवं कुशलता में वृद्धि करने के लिए यह विधि पर्याप्त उपयोगी है। 

(8) सम्मेलन एवं सेमिनार प्रशिक्षण 

कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने की यह विधि विचारों के आदान-प्रदान पर आधारित है। इसमें समय - समय पर संस्था के स्वामियों द्वारा विद्वानों के सम्मेलनों की व्यवस्था की जाती है जिससे कर्मचारियों को उनके विचारों का लाभ प्राप्त हो। इस व्यवस्था में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि एक सम्मेलन या सेमिनार में एक समान योग्यता के कर्मचारियों को ही भाग लेने की अनुमति दी जाए तभी इसका लाभ प्राप्त होगा। 

(9) मशीनों द्वारा प्रशिक्षण 

वर्तमान युग वैज्ञानिक युग है इस युग में इस प्रकार की मशीनों का आविष्कार किया गया है। जैसे - कम्प्यूटर, प्रोजेक्टर तथा अन्य मशीनें आदि जो कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रशिक्षण के लिए इस विधि का काफी प्रयोग किया जा रहा है। 

(10) भूमिका निर्वाह प्रशिक्षण 

प्रशिक्षण की यह आधुनिकतम तकनीक है जो उद्योग में प्रशिक्षण कार्य के लिए बड़ी ही लोकप्रिय हो गई है। इस पद्धति में प्रशिक्षार्थियों को विभिन्न पदाधिकारियों की भुमिका निर्वाह करनी होती है तथा इस कार्य में प्रशिक्षक उनका मार्गदर्शन करते हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न होता है तथा अपने कार्य के सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है।

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