राज्य के कार्यों का फासीवादी सिद्धांत क्या है? विशेषताएं तथा कार्य

 राज्य के कार्यों का फासीवादी सिद्धांत 

राज्य के फासीवादी कार्यों का संबंध उसे विशिष्ट विचारधारा से है जिसका उदय इटली में हुआ था। फासीवादी या फ़ासिज़्म इटैलियन भाषा के फैसियों शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है-लकड़ियों का बंधा हुआ बोझ। प्राचीन काल में रोम का राज्य चिह्न फैसियों, अर्थात लकड़ियों का बंधा हुआ बोझ, वह एक कुल्हाड़ी होता था। इस बोझ को राष्ट्रीय एकता और कुल्हाड़ी राजकीय शक्ति का प्रतीक माना जाता था।

फासीवादी राज्य की विशेषताएं

(1) लोकतंत्र का विरोध

फासीवाद लोकतंत्र को मूर्खतापूर्ण, भ्रष्ट, धीमी, काल्पनिक तथा अव्यवहारिक प्रणाली मानते हैं। फासीवादियों के अनुसार यथापि लोकतांत्रिक शासन में शासन शक्ति राजाओं अथवा कुलीन वर्ग के हाथों में न रहकर जनता के प्रतिनिधियों के हाथ में रहती है। परंतु व्यवहार में बहुत शिक्षित तथा चालक व्यक्तियों के हाथ में रहती है तथा आम जनता को मात्र मत देने का अधिकार मिला होता है।

(2) बुद्धिवाद का विरोध

फासीवादी बुद्धि व तर्क के स्थान पर निष्ठा एवं विश्वास का समर्थन करते हैं। केवल बुद्धि बात वह तर्क के आधार पर मनुष्य सुखमय जीवन बिता सकता है। अपने जीवन को पूर्णतया सुख में बनाने के लिए उसे जीवन के कुछ ऐसे आदर्श को मानना पड़ सकता है जो साधारण तैयार तर्क की कसौटी पर खरे न उतरने हो ‌। ज्योति के सामने सर्वोपरि लक्ष्य राष्ट्रहित की साधना है और उसे किसी भी प्रकार के तर्क पर परे जाकर मानना चाहिए।

(3) समाजवाद का विरोध

फासीवादियों का मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्ग संघर्ष तथा समाजवाद में विश्वास न था। उनका कहना था कि समाज में संघर्ष के स्थान पर परस्पर सहयोग होना चाहिए क्योंकि यदि समाज में श्रमिक वर्ग संघर्ष के स्थान पर सहयोग से रहेंगे तो इसमें संपूर्ण राष्ट्र की भलाई होगी तथा राष्ट्र की भलाई में ही समाज के सभी वर्गों का कल्याण निहित है।

(4) शांति एवं अंतराष्ट्रीयता का विरोध

फासीवादी विश्व शांति का विरोध करते हैं। मुसोलिनी ने तो यहां तक कहा था कि जो लोग विश्व शांति की बात करते हैं वे कायर है। विश्व शांति कभी संभव नहीं है। विरोधियों का दामन युद्ध के द्वारा ही किया जा सकता है। यही कारण है कि वह अंतरराष्ट्रीयता का भी विरोध करते हैं। उनका मानना है कि प्रत्येक राज्य को अपने-अपने कर्तव्यों का पालन वह अपने-अपने हितों की साधना करनी चाहिए, चाहे इसके लिए अन्य किसी राज्य के हितों का बलिदान भले ही क्यों न करना पड़े।

फासीवादी राज्य के कार्य

जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है कि फासीवाद राज्य के अंतर्गत राज्य को स्वाध्याय माना जाता है तथा व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह राज्य के लिए अपने हितों का बलिदान कर दें। इस प्रकार राज्य का व्यक्ति के ऊपर प्रभुत्व के साथ-साथ वर्चस्व स्थापित हो जाता है। इस दृष्टि से राज्य के कार्य इस प्रकार है -

(1) निगम निर्मित राज्य के सिद्धांत का समर्थन

फासीवादियों के अनुसार राज्य भिन्न-भिन्न व्यक्तियों का समुदाय ना होकर अनेक ऐसे निगमन से मिलकर बना है जिन्हें हम सामाजिक व राजनीतिक जीवन की विविध इकाईयां मान सकते हैं। इसी कारण, फासीवादी व्यक्तित्व समझते हैं कि विभिन्न व्यवसायों को अलग-अलग संगठनों में व्यवस्थित करने से सभी संगठन अपने-अपने क्षेत्र में राष्ट्रीय पहल को बेहतर बना सकते हैं, जिससे राष्ट्र की स्वाभाविक उन्नति हो सके।

(2) नेतृत्व की भूमिका

“राज्य की सुचारू भूमिका के लिए नेतृत्व का महत्वपूर्ण योगदान होता है।"फासीवादियों के अनुसार संख्या की अपेक्षा गुण की महत्ता अधिक है। वास्तव में जनता की वास्तविक इच्छा क्या है, इसका निर्णय वास्तविक बहुमत द्वारा ही नहीं होता, अभी तू उसके माता अनुसार उसकी अभिव्यक्ति प्रयोग जनता के किसी सर्वमान्य नेता द्वारा ही होती है।

(3) जनता को कर्तव्य बोध का आभास कराना

फासीवादी लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते तथा उन कमियों का उपचार करने का प्रयास करते हैं जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में पाई जाती हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में डाल बंदी बढ़ती है तथा राजनीतिक दल बहुमत प्राप्त करके इसका प्रयोग सार्वजनिक हित साधन की दृष्टि से नहीं वरन डालिए हित साधन की दृष्टि से करता है। एक सर्वमान्य नेता के नेतृत्व में जनता को कर्तव्य बोध का आभास कराया जाता है । जिससे की जनता अपने को राष्ट्रीय हित में समर्पित कर सके।

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