गदर पार्टी का अर्थ, स्थापना, घटनाएं तथा उपलब्धियां और असफलताएं

गदर पार्टी अथवा संगठन 

गदर उर्दू/पंजाबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है विद्रोह। संगठन के नाम को उसके सदस्य मुख्य ‘गदर पार्टी’ या ‘गद्र पार्टी’ लिखा करते थे। गदर क्रांतिकारियों का सामाजिक स्रोत मुख्याध्य उत्तरी अमेरिकी में बसे पंजाबी आप्रवासी थे। अपनी दशा सुधारने और नस्लवादी वह उत्प्रेरक अंग्रेज सरकार से भारत को आजाद करने की मकसद से उन्होंने गदर संगठन का गठन किया था। संगठन के एक संसद में एक केंद्रीकृत संगठन और प्रभावशाली नेता की कमी थी, जो भारत में निर्वासित लाला हरदयाल के उनके बीच शामिल हो जाने से पूरी हो गई थी।  

गदर पार्टी अथवा संगठन की स्थापना

मैं 1913 में पोर्टलैंड में उन्होंने हिंदी संगठन की स्थापना की थी, बाद में (1 नवंबर, 1913, सेन फ्रांसिस्को में) जिसका नाम बदलकर हिंदुस्तान गदर पार्टी रख दिया गया था। इस संगठन की पहली बैठक में सोहन सिंह भगना अध्यक्ष (गदर पार्टी के प्रथम अध्यक्ष कौन थे), लाला हरदयाल महासचिव और पंडित काशीराम मरोली कोषाध्यक्ष चुने गए थे। इस बैठक में युगांतर आश्रम नाम से एक मुख्यालय बनाने और मुफ्त वितरण के लिए एक साप्ताहिक अखबार गदर को प्रकाशित करने का फैसला किया गया था। 

गदर पार्टी अथवा संगठन की घटनाएं

गदर साप्ताहिक का पहला अंक 1 नवंबर 1913 में सेन फ्रांसिस्को से निकला था। पार्टी द्वारा यह अंक 1857 के विद्रोह की स्मृति में प्रकाशित किया गया था। गदर के पहले अंक में यह घोषणा छपी थी कि, “आज विदेशी भूमि पर गदर शुरू हो रहा है, लेकिन यह अपनी माधुरी जवान में अंग्रेजी राज के खिलाफ जंग की शुरुआत है। हमारा नाम क्या है? गदर! हमारा काम क्या है? ग़दर! क्रांति कहां होगी? भारत में। वह वक्त भी जल्द आएगा जब कलम और शाही की जगह खून और बंदूक बोलेगी।”

अपने मुख्य पृष्ठ पर “अंग्रेजी राज का दुश्मन” नर प्रकाशित करने वाले अखबार में घोषित किया जाता था, “चाहिए जांबाज सिपाही, भारत में विद्रोह की आग सुलगने के लिए। पगार-मौत, कीमत-शहादत, पेंशन-आजादी, युद्ध भूमि-भारत।” पार्टी का वैचारिक मिजाज धर्में निरपेक्ष था। वे देशभक्ति से लवरेज थे और औपनिवेशिक शासन के उत्पीड़न से भारत को आजाद कराने की उत्कृष्ट इच्छा रखते थे। पार्टी द्वारा एक संस्था, युगांतर आश्रम बनाई गई थी, जिसका मकसद युवा भारतीयों में देशभक्ति जगाना और भारत के विद्रोह के लिए प्रशिक्षित करना था। गदर के हर अंक में अंग्रेजी राज का कच्चा चिट्ठा प्रकाशित किया जाता था, जिससे औपनिवेशिक राज्य के दुष्परिणामों से पाठक परिचित हुआ करते थे।

प्रथम विश्व युद्ध के आगाज के साथ लाला हरदयाल और उनके कुछ साथी जर्मनी पहुंच गए, और उन्होंने बर्लिन में भारतीय इंडिपेंडेंस कमेटी की स्थापना की। कमेटी ने भारतीय सेनन में विद्रोह संगठित करने के लिए कार्यकर्ताओं को भारत रवाना करने, भारतीय क्रांतिकारियों को विस्फोटक मुहैया कराने और औपनिवेशिक शासन से आजादी के लिए भारत के अंग्रेजी सरकार पर दवा बोलने जैसी योजनाएं भी बनाई थी।

कामागाथा मारु कांड के बाद पंजाब में स्थितियां विस्फोटक हो गई थी। कनाडा सरकार ने “सीधी जहाज यात्रा” के बगैर आए लोगों का कनाडा में प्रवेश प्रबंध कर दिया था, इस नियम को चुनौती देते हुए एक भारतीय ठेकेदार गुरजीत सिंह कामागाटा मारू नामक जहाज को किराए पर लेकर 400 यात्रियों के साथ वैकूवर रवाना हो गया। कनाडाई अधिकारियों ने उसे जहाज को ही अपने यहां प्रवेश नहीं करने दिया, और मजबूर होकर जहाज वापस कोलकाता लौट कर आया। अनेक भारतीय महसूस करते थे कि कनाडा सरकार की यह कार्यवाही अंग्रेजों के दबाव में की गई है। यही नहीं, अंग्रेजों के आक्रमण रवैया के कारण जहाज के कोलकाता पहुंचने पर यात्रियों की सैनिकों के साथ झड़प हो गई, जिसमें कई यात्री मारे गए थे।

 गदर पार्टी की उपलब्धियां और असफलताएं

गदर आंदोलन को राष्ट्रवाद की विचारधारा, खासकर उपनिवेशवाद की राष्ट्रवादी आलोचना को लोकप्रिय बनाने में खासी कामयाबी हासिल हुई थी। नतीजतन, भारत और विदेशों में बड़े भारतीयों के बीच यह अवधारणा व्यापक तौर पर फैल गई थी कि भारतीय गरीबी वह पिछलापन और औपनिवेशन राज का परिणाम है। गदर की विशाल हर क्षमता मूलक और लोकतांत्रिक तत्वों के लिहाज से बेहद मजबूत थी। उसका धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण काफी मजबूत था, सोहन सिंह भकना ने कहा था, “हम सिख और पंजाबी नहीं है, हमारा धर्म देशभक्ति है।” 

Post a Comment

और नया पुराने