प्लेटो के 'आदर्श राज्य' की 8 प्रमुख विशेषताएं तथा आलोचनाएं

 प्लेटो का आदर्श राज्य

प्लेटो ने अपने पसिद्ध ग्रंथ रिपब्लिक में आदर्श राज्य संबंधी विचारों का उल्लेख किया। प्लेटो के समय में यूनानी नगर राज्यों में विभिन्न बुराइयां उत्पन्न हो गई थी। उनके उन्मूलन के लिए ही उसने आदर्श राज्य व्यवस्था का प्रतिपादन किया। आदर्श राज्य के स्वरूप के निर्धारण में उसने केवल इसी दृष्टि से विचार किया कि राज्य का स्वरूप कैसा होना चाहिए। प्लेटो एक ऐसे आदर्श राज्य का निर्माण करना चाहता है जिसमें शासन की बागडोर एक दार्शनिक के हाथ में हो। प्लेटो के अनुसार, “जब तक दार्शनिक राजा नहीं बनते तब तक राज्य बुराइयों से मुक्त नहीं हो सकते।”  

प्लेटो के आदर्श राज्य की विशेषताएं 

प्लेटो के आदर्श राज्य की प्रमुख विशेषताएं यह है — 

(1) दार्शनिकों का शासन 

प्लेटो के आदर्श राज्य की प्रमुख विशेषता दार्शनिकों का शासन है। प्लेटो का कहना है कि शासन संचालन का अधिकार सिर्फ विवेक युक्त दार्शनिक शासकों को ही होना चाहिए, तभी आदर्श राज्य का निर्माण हो सकता है। उसका मत है कि, “जब तक दार्शनिक लोग राजा नहीं होंगे तब तक इस संसार को राज्य अपनी बुराइयों से मुक्ति नहीं पा सकते।” दार्शनिक शासकों का सांसद गुणों पर आधारित होता है।

(2) आदर्श राज्य में श्रम विभाजन और कार्य के विशेषीकरण का सिद्धांत 

प्लेटो का विचार था कि यूनानी नगर राज्यों की दुर्व्यवस्था का मूल कारण श्रम विभाजन और कार्यात्मक विशेषीकरण के सिद्धांत का अभाव है। अतः उसने अपने आदर्श राज्य में श्रम विभाजन को प्रतिष्ठित किया है। श्रम विभाजन की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए मनुष्य की प्रवृत्तियों के अनुसार आदर्श राज्य को तीन भागों में विभाजित किया है — (1) उत्पादक वर्ग (2) सैनिक वर्ग (3) शासक वर्ग।  उत्पादक वर्ग का कार्य समाज की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। सैनिक वॉलपेपर कार्य राज्य की सुरक्षा करना है और शासक वर्ग का कार्य शासन का सुचारू रूप से संचालन करना है। 

    प्लेटो का विचार है कि जब समाज के यह विभिन्न वर्ग अपने अपने क्षेत्र में कार्यों को करते हैं तो वे अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ बन जाते हैं और वस्तुओं का उत्पादन अधिक मात्रा में तथा अच्छे रूप में होता है। यही कार्यात्मक विशेषीकरण का सिद्धांत कहलाता है। इस प्रकार प्लेटो आदर्श राज्य में श्रम विभाजन और कार्यात्मक विशेषीकरण के सिद्धांत को लागू करता है। अर्थात प्रत्येक व्यक्ति केवल उन्हीं कार्यों का संपादन करता है, जिन्हें करने के लिए वह सर्वाधिक योग्य है। 

(3) सुनियोजित शिक्षा प्रणाली

प्लेटो ने आदर्श राज्य के लिए एक ऐसी सुनियोजित शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था की है जो राज्य की प्रकृति और आवश्यकताओं की अनुकूल हो और जो नागरिकों को उनके कर्तव्यों का ज्ञान करा सके। इस प्रकार प्लेटो की शिक्षा का आधार दार्शनिक है। उसकी मान्यता है कि शिक्षा से मनुष्य के गुणों में वृद्धि होती है। इसलिए उसने शासक वर्ग के लिए सुनियोजित शिक्षा का समर्थन किया है। प्लेटो के अनुसार, “मानसिक रोग को मानसिक औषधि द्वारा ही ठीक किया जा सकता है।” 

(4) न्याय पर आधारित आदर्श राज्य

प्लेटो का आदर्श राज्य न्याय पर आधारित है। प्लेटो के अनुसार न्याय का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को केवल वही कार्य करना चाहिए जिसको करने की उसमें अधिकतम योगिता है और उसे दूसरों के कार्य में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। प्लेटो का आदर्श राज्य एक ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जिस मैं प्रत्येक व्यक्ति अपने निश्चित कर्तव्य का पालन करता है। 

(5) आदर्श राज्य में साम्यवादी व्यवस्था 

आदर्श राज्य की स्थापना के लिए प्लेटो साम्यवादी व्यवस्था की कल्पना की और बताया कि शासक और सैनिक वर्ग को निजी संपत्ति और निजी परिवार रखने का अधिकार नहीं होना चाहिए जिससे कि वह बिना किसी प्रकार बाध कि अपने कर्तव्यों का भली-भांति निर्वाह कर सकेंगे। यह साम्यवादी व्यवस्था प्लेटो ने केवल अभिभावक वर्ग के लिए ही बताया है, उत्पादक वर्ग के लिए नहीं।

(6) नर -नारियों को समान अधिकार

प्लेटो ने पुरुषों के समान ही स्त्रियों के लिए भी सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों का समर्थन किया है। उसका विश्वास था कि स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त करने में ही राज्य का ही हित है।

(7) साहित्य व कुरुचिपूर्ण कला पर प्रतिबंध 

प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य नव युवकों पर अनुचित प्रभाव डालने वाले अश्लील साहित्य एवं कला कृतियों पर कठोर नियंत्रण लगाया है इससे की नव युवकों का नैतिक पतन ना हो सके। 

(8) कानून रहित राज्य

प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में कानून को कोई महत्व नहीं दिया है। उसका मत है कि आदर्श राज्य में जिस दार्शनिक व्यक्ति का शासन होगा उसे कानून की कोई आवश्यकता नहीं है। उसका विवेक ही सर्वोच्च कानून है। इस प्रकार न्याय पर आधारित आदर्श राज्य की शासन व्यवस्था इस प्रकार की होगी कि कानून की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। 

प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना 

प्लेटो ने जिस आदर्श राज्य की स्थापना की है, उसे अधिकांश विचारक आज के युग में पूर्ण रूप से काल्पनिक मानते हैं। अरस्तु से लेकर आज तक विभिन्न विद्वानों ने प्लेटो के आदर्श राज्य की विभिन्न आधारों पर आलोचना की है— 

  1. आलोचकों का कहना है कि प्लेटो ने जिस आदर्श राज्य की कल्पना की है, उसको मूर्त रूप प्रदान करना संभव नहीं है। क्योंकि उसके सभी सिद्धांत अव्यवहारिक हैं। स्वयं प्लेटो ने यह कहा था, “यह राज्य शब्दों में स्थापित है। पृथ्वी पर मैं विचार करता हूं कि यह राज्य कहीं नहीं है।” 
  2. प्लेटो ने मानव आत्मा के तीन तत्वों के आधार पर आदर्श राज्य को भी तीन वर्गों में विभाजित किया है — (1) शासक (2) सैनिक और (3) उत्पादक वर्ग। यह वर्गीकरण त्रुटिपूर्ण है क्योंकि किसी भी व्यक्ति को एक निश्चित वर्ग में रखना उचित नहीं है। यह आवश्यकता नहीं कि विवेक संपन्न व्यक्ति साहस विहीन हो। एक व्यक्ति अच्छा विजेता व शासक दोनों हो सकता है। 
  3. प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में उत्पादक वर्ग की, जो कि बहुसंख्यक वर्ग है, घोड़ा उपेक्षा की है। उसे दास जैसी स्थिति में ला दिया है। उत्पादक वर्ग के प्रति प्लेटो का यह दृष्टिकोण अप्रजातांत्रिक तथा अन्याय पूर्ण है। 
  4. प्लेटो द्वारा प्रतिपादित आदर्श राज्य का आधार न्याय सिद्धांत भी दोषपूर्ण है, क्योंकि वह व्यक्ति के कर्तव्यों की बात तो करता है लेकिन उसके अधिकारों के संबंध में कुछ नहीं कहता।
  5. प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में कानून की उपेक्षा की है किंतु बिना कानून के राज्य का संचालन करना संभव नहीं है। 
  6. प्लेटो ने आदर्श राज्य में शिक्षा की जिस शिक्षा योजना का वर्णन किया है, वह अव्यावहारिक है, क्योंकि इसमें उत्पादक वर्ग की उपेक्षा की गई है। 
  7. प्लेटो का साम्यवाद एवं अस्थाई विभाग की योजना भी और व्यवहारिक है क्योंकि यह मानव समाज के मूल तत्वों के सर्वथा विपरीत है। पति पत्नी के संबंध शारीरिक ही नहीं आध्यात्मिक भी होते हैं।
  8. प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में दार्शनिक शासक को समस्त शक्तियों शॉप कर उसे पूर्ण रूप से निरंकुश बना दिया है। 

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