वयस्क मताधिकार का अर्थ, पक्ष और विपक्ष में तर्क

 वयस्क मताधिकार का अर्थ 

वयस्क मताधिकार का अर्थ यह है एक निश्चित आयु तक के सभी पुरुष और महिलाओं को शिक्षा संपत्ति, कुल, धर्म, लिंग आदि का ध्यान किए बिना जन्म तादिकाल मिल जाए तब उसे व्यस्क मताधिकार कहा जाता है। वैष्णो माता दिखाओ सभी पुरुषों और महिलाओं को प्राप्त होता है इसलिए इसे सार्वजनिक मताधिकार भी कहा जाता है। भारत में वयस्क मताधिकार  18 वर्ष की सभी पुरुषों और महिलाओं को प्राप्त है। 1989 की संविधान की 61 वें संशोधन अधिनियम द्वारा मतदाताओं की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी थी। इस संबंध में एक और बात ही हो है कि पागल विदेशिया कानून द्वारा मताधिकार वांछित अपराधी वयस्क होने के बावजूद मतदान नहीं हो सकता। मताधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त होता है विदेशियों को नहीं, किसी दूसरे देश की नागरिकता ग्रहण कर लिए जाने पर मताधिकार शिवम समाप्त हो जाता है।


 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क 


वयस्क मताधिकार के पक्ष में तर्क- 

(1)  यह सिद्धांत समानता का प्रतिपादक है। सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के अंतर्गत सभी वयस्कों को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार दिया जाता है।

(2) वयस्क मताधिकार के कारण  राज्य में विद्रोह या क्रांति की संभावना बहुत कम रहती है। सभी लोगों द्वारा मतदान में भाग लिए जाने के कारण उनमें सरकार के प्रति असंतोष या रोग का भाव कम रहता है जिसके फल शुरु राज्य में क्रांति या विद्रोह की संभावना कम रहती है।

(3) वयस्क मताधिकार कानून पालन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कारक है। जब देश की समस्त जनता शासकों और कानून निर्माताओं को चुनती है तो स्वाभाविक है उसे उस कानूनों का पालन करने हेतु नैतिक रूप से बाध्य होना पड़ेगा।

(4)  वयस्क मताधिकार  लोकतंत्र के अनुकूल है। लोकतांत्रिक पद्धति में सत्ता जनता में निवास करती है अथवा जनता को बिना किसी भेदभाव के वयस्क मताधिकार प्रदान किया जाना चाहिए।

(5)  वयस्क मताधिकार के समर्थकों का कहना है कि राज्य की स्थिति और कानून का प्रभाव समस्त जनता पर पड़ता है अथवा जनता को शासकों और कानून निर्माताओं को चुनने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।

(6)  वयस्क मताधिकार में नागरिकों को राजनीतिक परीक्षण मिलता है। निर्वाचन राजनीतिक परीक्षण का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मतदाता निर्वाचन की समग्र प्रक्रियाओं में भाग लेकर राजनीतिक प्रशिक्षण प्राप्त करता है उसे राजनीतिक दलों के सिद्धांतों उद्देश्य और कार्यक्रमों आदि को समझने का अवसर प्राप्त होता है।

(7)  सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार मैं जनता को भी अवसर मिलता है कि वह राजनीति में अपना योगदान दें और देश की उन्नति में अपना योगदान दें।

(8)  जनता जब अपने शासकों और कानून निर्माताओं का चुनाव करती है तो उन में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत होती है। इस प्रकार व्यस्क मताधिकार राष्ट्रीय भावना का संवर्धन करने में एक महत्वपूर्ण तत्व है।

(9)  सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रणाली के अंतर्गत नागरिकों में स्वभाव विमान का भाव जागृत होता है तथा उन्हें अपने व्यक्तित्व के विकास का पूर्ण अवसर प्राप्त होता है। सीमित मताधिकार के अंतर्गत बहुत से लोग इस लाभ से वंचित रहते हैं जो अलोकतांत्रिक हैं।

(10)  वयस्क मताधिकार के जरिए सार्वजनिक हित की रक्षा होती है। सीमित मताधिकार में कुछ ही लोगों के हितों का साधन होगा। संपूर्ण जनता मतदान में भाग लेती है तथा सार्वजनिक हित के रक्षा की जा सकेगी।


वयस्क मताधिकार के विपक्ष में तर्क- 

(1)  वयस्क मताधिकार के अंतर्गत मूर्ख और बुद्धिमान में कोई अंतर नहीं किया जा सकता है। यह सिद्धांत केवल संख्या पर जोर देता है और गुण की अनदेखी करता है।

(2) वयस्क मताधिकार को लागू करने में अनेक प्रकार की प्रशासकीय कठिनाइयां सामने आती है। चुनाव के लिए व्यापक पैमाने पर व्यवस्था करनी पड़ती है जिससे निर्वाचन की प्रक्रिया जटिल हो जाती है तथा अंधाधुंध पैसा खर्च करना पड़ता है ।

(3)  निर्वाचन कार्य में धनबल बाहुबल हिंसा बैटल कारण आधे हिंसक कार्यवाही अभी इसी कारण होती हैं। भारत में शायद ही कोई ऐसा सामान्य निर्वाचन होगा जो शांतिपूर्वक निपट गया होगा।

(4)  सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का सिद्धांत खतरनाक है क्योंकि इसके द्वारा मूर्खों और ज्ञानियों को शासक और कानून निर्माताओं को चुनने का अधिकार दिया जाता है। इसी संदर्भ में लेकी ने अपनी ‘डेमोक्रेसी एंड लिबर्टी' नामक पुस्तक में लिखा है कि यह कितना असंगत और खतरनाक है कि तीक्ष्ण बुद्धि वाले व्यक्तियों की अपेक्षा मूर्खों  अज्ञानियों को शासन संचालन को चुनने का दायित्व सौंप दिया जाता है।

(5)  सामान्य नागरिक जिनके पास न तो शिक्षा और ना ही संपत्ति अपने मताधिकार का ध्यान आदि के लालच में दुरुपयोग कर सकते हैं।

(6) महिलाएं पुरुषों के प्रभाव में आकर ही अपने मतदान का प्रयोग करते हैं अधिकतर मामलों में उनकी अपनी इच्छा नहीं होती है। यदि पुरुषों की इच्छा की प्रतिकूल मतदान करती है तो घर में कलेश होता है। कुछ आलोचकों के अनुसार महिलाओं को मताधिकार नहीं मिलना चाहिए।

(7) वयस्क मताधिकार में स्त्रियां नागरिक कर्तव्य पूरा करने में असमर्थ होती है क्योंकि उनका पूरा समय घर में और बच्चों को संभालने में बीतता है।  

(8) मताधिकार एक पवित्र कर्तव्य है, जो केवल समझदार हो बुद्धिमानों को ही प्राप्त होना चाहिए। 


निष्कर्ष अथवा समीक्षा 

वर्तमान युग वयस्क मताधिकार का युग है। शिक्षा, संपत्ति अथवा लिंग-भेद के आधार पर मताधिकार की व्यवस्था चाहे हमें कितनी भी रुचि कर लगे लेकिन उसे तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है। गार्नर के अनुसार, “क्या यह उचित है कि वह व्यक्ति जो दुर्भाग्य तथा स्थिति का शिकार होकर धन को बैठा है, सभी योग्यताओं के होते हुए भी मताधिकार से वंचित कर दिया जाए।” इसी प्रकार शिक्षा भी राजनीतिक जागरूकता होने अथवा ना होने का मापदंड नहीं है। आज की प्रगतिशील समाज में सभी को बिना भेदभाव के मत देने का अधिकार देना होगा। यही कारण है कि वर्तमान युग में संसार के सभी प्रगतिशील देश में व्यस्क मताधिकार ही प्रदान किया जाता है।

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